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चंद्रा टाइम्स

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Festival Special : जीमूतवाहन भगवान की पावन कथा – जितिया



बहुत पुरानी बात है। दो बहनें थीं – चूल्हों (बड़ी बहन) और सियारों (छोटी बहन)। दोनों ही पक्षी के रूप में रहती थीं।

🌊 जब जितिया व्रत का दिन आया, तो तालाब के किनारे का दृश्य बहुत ही अद्भुत था। चारों ओर औरतें स्नान कर रही थीं, झिंगली के पत्तों पर भगवान जीमूतवाहन को भोग अर्पित कर रही थीं और आस्था का महासागर उमड़ रहा था।

दोनों बहनों का मन भी श्रद्धा से भर गया। उन्होंने संकल्प लिया –
“हम भी आज से यह कठिन व्रत करेंगे और भगवान जीमूतवाहन को प्रसन्न करेंगे।”

वे स्नान कर तालाब से निकलीं और लोगों की भाँति भगवान को भोग अर्पित कर व्रत आरंभ किया।

  • चूल्हों बड़ी बहन थी, धर्मपरायण और पूजा-पाठ में रमी रहती थी।

  • सियारों छोटी बहन थी, अल्हड़ और जल्दी हार मानने वाली।

चूल्हों ने समझाया –
“बहन, यह व्रत बहुत कठिन है। इसमें जल की एक बूँद तक नहीं पी जाती, अन्न का एक दाना तक नहीं खाया जाता। जो इसे नियमपूर्वक करती है, उसकी संतान सुरक्षित रहती है।”

सियारों ने हाँ तो भर दी, पर जब रात गहराने लगी तो भूख-प्यास से उसका जी तड़प उठा। तभी उसे एक मरी हुई भैंस दिखी। वह दौड़ पड़ी और उसका मांस खाने लगी।

ऊपर घोंसले से चूल्हों ने आवाज दी –
“बहन! कट-कट की यह कैसी आवाज है? तुमने कुछ खा तो नहीं लिया?”
सियारों झूठ बोल गई –
“नहीं बहन, मैं तो बिना पानी रहे 24 घंटे से… इसी कारण शरीर कट-कट कर रहा है।”

सुबह होते ही दोनों ने फिर भगवान को भोग लगाया और खीरा-अंकुरित मूंग से व्रत का पारण किया।


🌺 अगले जन्म का परिणाम

समय बीता और दोनों बहनों ने नया जन्म लिया।

  • चूल्हों एक गरीब ब्राह्मण की बेटी बनी और विवाह के बाद सात पुत्रों की माँ बनी।

  • सियारों रानी बनी, परंतु संतान सुख से वंचित रही।

रानी सियारों के मन में यह बात गड़ गई कि “मेरी बहन ही मेरी कोख बाँध चुकी है। वही डायन है।”

उसने राजा से ज़िद की –
“जब तक मेरी बहन चूल्हों के सातों पुत्रों का सिर मेरे सामने नहीं लाया जाएगा, मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगी।”

राजा विवश हो गया। चूल्हों के सातों पुत्र खेत में काम कर रहे थे। रानी के मंत्री गए और उनके सिर काट लाए। कटे हुए सिर लाल कपड़े से ढककर एक डाले में चूल्हों को भेज दिए गए।

चूल्हों ने डाले को भगवान के चरणों में रख दिया।
संध्या को जब पुत्र लौटे तो उन्होंने डाले का कपड़ा हटाया –
✨ सातों कटे सिर नारियल में बदल चुके थे! ✨

यह चमत्कार सबने देखा। फिर भी सियारों को विश्वास न हुआ। उसने बहन पर ही दोष मढ़ा। तब चूल्हों बोली –

“बहन, स्मरण करो… पिछले जन्म में हमने साथ-साथ जितिया का व्रत किया था। मैंने तुम्हें समझाया था कि इस व्रत में कुछ भी खाना-पीना नहीं होता। पर तुमने भैंस का मांस खा लिया था और मुझसे झूठ बोला कि तुम्हारा शरीर कट-कट कर रहा है। यही कारण है कि आज तुम्हें संतान सुख नहीं मिला।”

सत्य साबित करने के लिए दोनों ने अपने दाँत खोदे।

  • चूल्हों के दाँत से खीरा और अंकुरित मूंग निकला – व्रत का प्रसाद।

  • सियारों के दाँत से भैंस का मांस निकला।

अब सबके सामने सच्चाई उजागर हो गई। लोग चूल्हों को प्रणाम करने लगे और बोले –
“धन्य हैं जीमूतवाहन बाबा, जो संतानों की रक्षा करते हैं।”


🦁 जीमूतवाहन भगवान का करुणा रूप

एक गाँव में एक गरीब बुढ़िया रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। रोज़ गाँव में बाघ आता और किसी-न-किसी के बच्चे को खा जाता। अब बुढ़िया की बारी थी।

बुढ़िया फूट-फूटकर रो रही थी –
“मेरे पति तो कब के गुजर गए, यही बेटा सहारा है। कल बाघ उसे खा जाएगा और मेरा सब कुछ खत्म हो जाएगा।”

तभी भगवान जीमूतवाहन ब्राह्मण का रूप धरकर आए।
उन्होंने कहा –
“माँ, तुम चिंता मत करो। तुम्हारे पुत्र की रक्षा मैं करूँगा। कल उसकी जगह मैं बाघ के सामने जाऊँगा।”

अगले दिन जब बाघ आया, तो बुढ़िया ने उसे लड्डू देकर कहा –
“रुको, मैं अपने बेटे को लेकर आती हूँ।”

इतने में भगवान ब्राह्मण रूप में प्रकट हुए और बाघ का वध कर दिया। गाँव के सभी बच्चे सुरक्षित हो गए।


🌼 व्रत का महात्म्य

तभी से यह मान्यता बनी कि जो स्त्रियाँ जीवित्पुत्रिका (जितिया) व्रत श्रद्धा और नियम से करती हैं, भगवान जीमूतवाहन उनकी संतान की रक्षा करते हैं और उन्हें संतान सुख का आशीर्वाद देते हैं।

🌹 लेखिका – चांदनी झा 🌹

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