पटना : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में बगावत के सुर सुनाई देने लगे हैं। केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष, जीतन राम मांझी ने शनिवार को मुंगेर में आयोजित भूइयां-मुशहर सम्मेलन में खुलकर अपनी नाराजगी व्यक्त की और खुले मंच से कैबिनेट छोड़ने की धमकी तक दे डाली। उनका आरोप है कि उन्हें झारखंड और दिल्ली चुनावों में कोई सीट नहीं दी गई, जबकि अन्य सहयोगियों को सीटें मिलीं। इस पर उन्होंने बीजेपी और गठबंधन के अन्य सहयोगियों से तीखा सवाल किया और कहा कि यह उनके पार्टी के जनाधार को नजरअंदाज करने का परिणाम है।
झारखंड और दिल्ली में सीटों की मांग पर नाराजगी
जीतन राम मांझी ने अपने भाषण में बताया कि झारखंड विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं दी गई। इसके बाद दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी उनके दल को सीट नहीं दी गई, जबकि उनके गठबंधन के साथी, जैसे नीतीश कुमार की जेडीयू और चिराग पासवान की लोजपा को एक-एक सीट मिली। उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा, "वो (बीजेपी) कहते हैं कि हम सीट मांगने नहीं गए थे, इसलिए हमें सीट नहीं मिली। यह क्या अन्याय नहीं है? क्या हमारा कोई जनाधार नहीं है?"
मांझी ने आगे कहा कि यह सीधे तौर पर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) को कमजोर समझने की गलती है। उन्होंने बीजेपी से पूछा, "क्या उन्होंने हमारी ताकत को सही से पहचाना है? वे समझते हैं कि हम केवल छोटे हैं, लेकिन अगर उन्हें हमारी ताकत देखनी है तो मेरी जनसभाओं को देखिए।" मुंगेर में आयोजित सम्मेलन में हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों से उनका आत्मविश्वास स्पष्ट था, और उन्होंने मंच से यह चुनौती दी कि उनके जनाधार को नजरअंदाज करने की गलती नहीं की जानी चाहिए।
बीजेपी को खुली धमकी: "मैं कैबिनेट छोड़ सकता हूं"
जीतन राम मांझी ने बीजेपी को खुली धमकी देते हुए कहा, "अगर मुझे लगता है कि मेरी पार्टी और हमारे जनाधार को सही सम्मान नहीं मिल रहा, तो मैं कैबिनेट छोड़ने से भी नहीं डरूंगा।" उनके इस बयान से बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है, और यह साफ है कि उनका असंतोष गठबंधन के भीतर पनप रहा है। मांझी ने यह भी कहा कि एनडीए की ताकत और गठबंधन के सहयोगियों के बीच एकजुटता का महत्व है, और अगर उनका दल बराबरी का सम्मान नहीं पाता, तो वह अपने रास्ते पर चलने के लिए तैयार हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति में भी दिखे बगावती सुर
जीतन राम मांझी के बयान से बिहार की सियासत में उबाल आया है, लेकिन उनकी नाराजगी केवल बिहार तक सीमित नहीं है। महाराष्ट्र में भी इसी तरह के बगावती सुर सुनाई दे रहे हैं। यहां एनसीपी के अजित पवार ने बीजेपी के साथ रिश्ते और भी प्रगाढ़ किए हैं, जबकि शिवसेना के एकनाथ शिंदे बार-बार गठबंधन से नाराज होकर अलग होने की धमकी दे रहे हैं। यह संकेत देता है कि देशभर में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के बीच भीतर ही भीतर विरोध बढ़ रहा है।
अभी भी एनडीए का हिस्सा रहने की इच्छा
हालांकि, जीतन राम मांझी ने कैबिनेट छोड़ने की धमकी तो दी, लेकिन उन्होंने यह भी साफ किया कि वे अभी भी एनडीए का हिस्सा बने रहने के इच्छुक हैं, बशर्ते उनके पार्टी और जनाधार को उचित सम्मान मिले। उनके लिए, यह एक अवसर है अपने समर्थकों को दिखाने का कि उनकी पार्टी को महत्व मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर उनकी पार्टी को उचित स्थान मिलता है, तो वह एनडीए के साथ बने रहने के लिए तैयार हैं, लेकिन यदि स्थिति नहीं बदलती है तो वह अपने रास्ते पर जाने के लिए स्वतंत्र होंगे।
जनाधार को लेकर आत्मविश्वास
मांझी का आत्मविश्वास स्पष्ट रूप से उनके भाषण में नजर आया। उन्होंने कहा, "हमारा अस्तित्व सिर्फ दिल्ली और झारखंड चुनावों में नहीं बल्कि बिहार में भी साफ है। जब हमारी पार्टी मुंगेर जैसे छोटे शहरों में भी इतनी बड़ी संख्या में समर्थकों को इकट्ठा कर सकती है, तो इसका मतलब है कि हमारी जनाधार केवल बिहार तक सीमित नहीं है।"
उनका यह बयान साफ तौर पर इस बात को इंगित करता है कि वह अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने और पार्टी को मजबूती देने के लिए किसी भी कदम को उठाने के लिए तैयार हैं। उनका मानना है कि अगर उनकी पार्टी को सही स्थान और सम्मान मिला, तो यह ना केवल उन्हें, बल्कि गठबंधन को भी लाभ पहुंचाएगा।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नया मोड़
बिहार विधानसभा चुनाव की घड़ी नजदीक आ रही है, और एनडीए के भीतर की खटास अब सार्वजनिक हो गई है। जीतन राम मांझी का यह बयान इस बात का संकेत है कि बिहार में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के बीच मतभेद और भी गहरे हो सकते हैं। ऐसे में यह देखना होगा कि एनडीए की साझेदारी का भविष्य क्या होगा और क्या जीतन राम मांझी अपनी पार्टी को अपनी इच्छाओं के मुताबिक प्रमुखता दिलवा पाएंगे।
निष्कर्ष
जीतन राम मांझी के बगावती बयान ने बिहार की राजनीति में हलचल मचाई है। उनका यह कदम एनडीए में उठे बगावत के सुरों को और भी तेज कर सकता है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले यह संघर्ष और भी तीव्र हो सकता है, जिसमें गठबंधन की एकता पर सवाल उठने की संभावना है।
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