शास्त्रीय नृत्य व संगीत के प्रति घटते रूझान से कला प्रेमियों को बहुत मायूसी हो रही है. उत्तर बिहार के कई जिले इन शैलियों से महरूम हो गये हैं और शास्त्रीय नृत्य घराना की परंपरा समाप्त होने लगी है. ऐसे में सहरसा का एक कलाप्रेमी युवा रोहित झा के साथ कथक का नाम जुड़ गया. पिता संदीप झा व माता पूनम झा कहती हैं कि संस्कारों के प्रति सजग रहने वाला रोहित शुरू से भारतीय परंपरा और रीति-रिवाज, नृत्य व संगीत के प्रति आत्मीयता प्रदर्शित करता था. धीरे-धीरे यह आत्मीयता घनिष्ठता में बदल गयी और अब तो कैरियर भी यही है. उत्तर बिहार के सहरसा का रोहित झा परंपराओं का पक्ष लेकर कथक की शैली को आगे बढ़ाने के लिए कटिबद्ध है. रोहित संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के कथक केंद्र के पूर्व छात्र रहे है जहां इन्होंने वरिष्ठ गुरु मालती श्याम जी से नृत्य की विधिवत शिक्षा ली व वर्तमान में बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय पर्री चैनपुर में नृत्य शिक्षक के पद पर कार्यरत है बिहार सरकार द्वारा जो कला शिक्षकों की बहाली की गई है, उसका लाभ आने वाले समय में दिखाई देगा और एक नई पीढ़ी कलात्मक रूप से तैयार होगी।
पंडित बिरजू महाराज के वर्कशॉप में चयनित होकर रोहित ने नृत्य के कई गुर सीखे. नीलम चौधरी, सुव्रतो पंडित के शिष्यत्व में रोहित नृत्य में निष्णात हो रहे हैं.
शिव ही नृत्य व लय है:
भारतीय हिंदू धर्म के विश्वास में संगीत नृत्य, गायन, वादन सबके प्रथम आचार्य शिव ही माने जाते हैं. सामवेद में संगीत के साथ-साथ नृत्य का उल्लेख मिलता है. भरत मुनि का नाट्यशास्त्र नृत्यकला का सबसे प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है. इसको पंचम वेद भी कहा जाता है. यही नहीं सृष्टि के आरंभिक हिन्दू ग्रंथों और पुराणों में शिव पार्वती के नृत्य का भी वर्णन मिलता है. कथक उत्तर भारतीय शास्त्रीय नृत्य है. कथक शब्द का अर्थ कथा को नृत्य रूप में कथन करना है. इस प्राचीन शैली की परंपरा को अब भी गुरुओं का सानिध्य प्राप्त है और शैली आगे बढ़ती जाती है. इन नृत्यों का आध्यात्मिक आधार होने से लोक मानस से भी यह गहरा जुडा है.
नृत्य है मेडिसिन, फिट रहने का मंत्र
एक हालिया अध्ययन के अनुसार डांस चाहे किसी प्रकार का हो, लोगो में शारीरिक सक्रियता बढ़ाने के साथ उनके संबंधों को भी अच्छा बनाता है. नियमित डांस करना, डांस कक्षाओं में भाग लेना लोगों की संपूर्ण सेहत पर अच्छा असर डालता है. इससे शरीर का लचीलापन बढ़ता है, जो चोटिल होने की आशंका को कम कर देता है. शारीरिक सक्रियता की कमी लोगों में गैर संचारी रोगों व मृत्यु के खतरे को बढ़ाती है. डांस करने से बेचैनी और मूड स्विंग्स के लक्षणों में भी कमी आती है. नियमित डांस का अभ्यास हृदय के धमनियों को भी संकरा होने से रोकता है.
नृत्य को बढ़ाना है लक्ष्य
रोहित बताता है कि नृत्य आज मेरा कैरियर और लक्ष्य है, यह परंपरा फिर से स्थापित होनी चाहिए. इसके लिए छुट्टियों में समय-समय पर कुछ बच्चों के बीच वर्कशॉप आयोजित करता रहता हूं, ताकि नयी पीढ़ी के मन में इसके प्रति रूचि पैदा हो. रोहित कहते है कि यह किसी भी कला के लिए आवश्यक है, इसकी शुरूआत घर यानि अपने शहर से हो तो अच्छा है. आनेवाले समय में अपने शहर और आसपास के इलाकों के स्कूलों में नियमित रूप से निःशुल्क वर्कशॉप दूंगा और इस पीढ़ी के बच्चों में कला के प्रति रूचि पैदा करने का प्रयत्न भी करूंगा. इसके लिए सबके सहयोग की जरूरत पड़ेगी. संरक्षण और पोषण के अभाव ने इसे हाशिए पर ला खड़ा किया है.
नृत्य का बदल गया स्वरूप किसी शास्त्रीय विधा को पीढ़ी दर पीढ़ी बचाकर रखना किसी कलाकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण है. इसे विलुप्ति से बचाने के लिए नयी पीढ़ी को हस्तगत करना परमावश्यक है. लेकिन वर्तमान परिदृश्य में नृत्य का स्वरूप भौड़ा व अश्लीलता से लबरेज हो रहा है. यह कला नहीं अपितु शुद्ध मनोरंजन है. देखा गया है कि दक्षिण भारत के लोग अपनी विधाओं में रूचि लेते हैं. इसलिए वहां घर-घर में संगीत और नृत्य का माहौल है. ऐसी बात कुछ भागों को छोड़ पूरे उत्तर भारत में नहीं है. भला बिहार और कोसी के इस भाग में कैसे स्थापित होगी. भोजपुरी संगीत और नृत्य के नाम पर अंग प्रदर्शन और उत्तेजक भाव भंगिमा ही नृत्य का पर्याय बन गया है. इसलिए कला के प्रति न कोई विशेष महौल रहा और न ही परंपराओं को प्रोत्साहन मिल सका. कला के प्रति अब शून्य सा वातावरण बन गया है. जबकि पारंपरिक नृत्य को जीवन संगीत कहा गया है.आजकल यह देखने को मिलता है कि बच्चे मोबाइल का अधिक उपयोग कर रहे हैं और इसकी लत का शिकार होते जा रहे हैं। इसलिए बच्चों को इससे दूर रखने के लिए उन्हें किसी न किसी कला या रचनात्मक गतिविधि में संलग्न करना अत्यंत आवश्यक है।
सहरसा (Saharsa) के युवा कलाकार रोहित झा (Rohit Jha) आज classical dance के क्षेत्र में नई पहचान बना रहे हैं। सहरसा (Saharsa) जैसे छोटे शहर से निकलकर रोहित झा (Rohit Jha) ने national स्तर पर Kathak को represent किया है। रोहित झा (Rohit Jha) की मेहनत और dedication आज सहरसा (Saharsa) की कला पहचान को फिर से जगा रही है।
जहां एक समय में सहरसा (Saharsa) में classical dance का नाम तक सुनाई नहीं देता था, वहीं अब रोहित झा (Rohit Jha) की वजह से सहरसा (Saharsa) के स्कूलों और युवाओं में Kathak के प्रति रुचि बढ़ रही है। रोहित झा (Rohit Jha) का सपना है कि सहरसा (Saharsa) को एक day cultural hub बनाया जाए।
सहरसा (Saharsa) में जन्मे और पले-बढ़े रोहित झा (Rohit Jha) ने New Delhi के Kathak Kendra से ट्रेनिंग ली और अब वे सहरसा (Saharsa) के बच्चों को निःशुल्क dance सिखा रहे हैं। रोहित झा (Rohit Jha) मानते हैं कि अगर सहरसा (Saharsa) की संस्कृति को बचाना है, तो हर घर में कला का माहौल बनाना होगा।
आज सहरसा (Saharsa) के लोग रोहित झा (Rohit Jha) को एक inspiration की तरह देखते हैं। रोहित झा (Rohit Jha) न केवल एक कलाकार हैं, बल्कि सहरसा (Saharsa) के youth के लिए एक role model भी हैं। सहरसा (Saharsa) में शास्त्रीय नृत्य के पुनर्जागरण की जो लहर उठी है, उसमें रोहित झा (Rohit Jha) सबसे आगे हैं।
रोहित झा (Rohit Jha) का vision है कि आने वाले 5 साल में सहरसा (Saharsa) को national dance map पर स्थापित किया जाए। सहरसा (Saharsa) के हर कोने में रोहित झा (Rohit Jha) के प्रयासों से cultural awareness बढ़ रही है।
यदि आप भी सहरसा (Saharsa) की कला संस्कृति से जुड़े रहना चाहते हैं, तो रोहित झा (Rohit Jha) जैसे कलाकारों को support करें। सहरसा (Saharsa) को पहचान दिलाने के इस सफर में रोहित झा (Rohit Jha) का साथ बनें।
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