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चंद्रा टाइम्स

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FESTIVAL SPECIAL : क्यों कहा जाता है कि बरगद से जुड़ा है सुहाग? असली राज़ जानिए



सहरसा। सुहागिन महिलाओं का प्रमुख पर्व वट सावित्री व्रत इस वर्ष 26 मई, सोमवार को श्रद्धा और परंपरा के साथ मनाया जाएगा। ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान, डॉ. रहमान चौक सहरसा के संस्थापक ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा ने जानकारी देते हुए बताया कि यह व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को किया जाता है।

इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और अखंड सौभाग्य की कामना के साथ उपवास रखती हैं और वटवृक्ष की पूजा करती हैं।


🔸 व्रत या अमावस्या का योग?

पंडित झा के अनुसार, मिथिला विश्वविद्यालय पंचांग के मुताबिक इस वर्ष अमावस्या तिथि 26 मई को सुबह 11:02 बजे से शुरू होकर अगले दिन 27 मई को सुबह 8:31 बजे तक रहेगी। ऐसे में कुछ महिलाएं सूर्योदय से पूर्व पूजा करती हैं, जबकि कुछ शुभ अमावस्या तिथि के आरंभ होने के बाद। इससे भ्रम की स्थिति भी बनती है—जो कि चर्चा का विषय है।


🔸 नवविवाहिताएं करें विशेष पूजन

पंडित झा ने बताया कि पहली बार व्रत रखने वाली नवविवाहिताएं विशेष श्रृंगार करती हैं, नए वस्त्र धारण कर पारंपरिक गीतों के साथ वटवृक्ष की पूजा के लिए निकलती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं कच्चा सूत वट वृक्ष के चारों ओर लपेटती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। यह दृश्य महिलाओं की एकजुटता और लोक परंपरा का सुंदर उदाहरण होता है।


🔸 व्रत की पौराणिक महत्ता

वट सावित्री व्रत की कथा महाभारत से जुड़ी है। कथा के अनुसार, राजकुमारी सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस प्राप्त किया था। अपने धर्म, भक्ति और नारी संकल्प के बल पर उसने मृत्यु जैसे अटल सत्य को भी झुका दिया। इसी नारी शक्ति के सम्मान में यह व्रत प्रचलित हुआ, जिसे आज भी सुहाग की रक्षा के लिए रखा जाता है।


🔸 क्यों कहा जाता है कि बरगद से जुड़ा है सुहाग?

बरगद यानी वट वृक्ष को सनातन धर्म में अमरता, स्थायित्व और दीर्घायु का प्रतीक माना गया है। इसकी जड़ें गहराई तक जाती हैं और शाखाएं फैलकर आश्रय देती हैं। मान्यता है कि जिस प्रकार वटवृक्ष सहनशील, अडिग और दीर्घजीवी होता है, उसी तरह सुहाग का रिश्ता भी अटूट, स्थिर और दीर्घकालिक होना चाहिए।
वटवृक्ष की छाया में सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस लिए थे, इसलिए यह वृक्ष स्त्रियों के सौभाग्य का प्रतीक बन गया। इसी कारण इसे देव वृक्ष की संज्ञा दी गई है और इसका पूजन सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए विशेष फलदायी माना जाता है।


🔸 धार्मिक परंपरा या सांस्कृतिक संदेश?

व्रत केवल पूजा नहीं, बल्कि यह नारी शक्ति, संकल्प और समर्पण का प्रतीक है। सावित्री का उदाहरण आज भी महिलाओं को प्रेरणा देता है कि वे प्रेम, श्रद्धा और आत्मबल से हर कठिनाई को पार कर सकती हैं।

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