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चंद्रा टाइम्स

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Saharsa News : बेटा तंबाकू खा रहा है… मां चुप है: सहरसा की खतरनाक चुप्पी

तस्वीर : नवीन मिश्रा (chandratimes.com)

हर साल 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस (World No-Tobacco Day Saharsa ) मनाया जाता है, लेकिन तंबाकू से होने वाली बर्बादी साल भर जारी रहती है। सहरसा जैसे जिलों में तंबाकू अब सिर्फ एक आदत नहीं, बल्कि एक खतरनाक लत का रूप ले चुकी है जो धीरे-धीरे कई जिंदगियों को निगल रही है। गांव से लेकर शहर तक, हर गली, हर नुक्कड़ पर तंबाकू के किसी न किसी रूप में मौजूदगी दिखती है। खैनी, गुटखा, बीड़ी और सिगरेट का प्रयोग केवल वयस्कों तक सीमित नहीं रहा, अब किशोर और यहां तक कि स्कूली बच्चे भी इसके चपेट में आ रहे हैं।

तंबाकू का जहर शरीर को अंदर ही अंदर खत्म करता है। मुंह का कैंसर, फेफड़ों की बीमारी, दिल की समस्याएं, पेट की गड़बड़ी, और कई अन्य बीमारियां सीधे तौर पर तंबाकू सेवन से जुड़ी होती हैं। आंकड़े बताते हैं कि हर साल लाखों लोग तंबाकू के कारण अकाल मृत्यु का शिकार होते हैं, और यह संख्या समय के साथ बढ़ रही है। सहरसा जैसे इलाकों में, जहां स्वास्थ्य सेवाओं तक हर किसी की पहुँच आसान नहीं है, वहां तंबाकू से जुड़ी बीमारी जानलेवा बन जाती है।


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यह बात चिंताजनक है कि तंबाकू सेवन को अब भी एक सामान्य सामाजिक व्यवहार समझा जाता है। कई लोग इसे तनाव से राहत का साधन मानते हैं, तो कुछ इसे आदत कहकर टाल देते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि यह आदत नहीं, एक धीमा ज़हर है जो न केवल शरीर को, बल्कि परिवार और समाज को भी नुकसान पहुंचाता है। एक व्यक्ति की तंबाकू लत उसके बच्चों, जीवनसाथी और आसपास के लोगों के लिए भी खतरा बन जाती है, खासकर तब जब तंबाकू का धुआँ या उसका गंध दूसरे भी झेलते हैं।

सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि सहरसा में कई किशोर और युवा बहुत कम उम्र में तंबाकू की लत का शिकार हो रहे हैं। स्कूल-कॉलेज के छात्र चोरी-छुपे इसका सेवन शुरू करते हैं, और फिर यह आदत धीरे-धीरे गहरी लत में बदल जाती है। यह न केवल उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि पढ़ाई और करियर को भी पटरी से उतार देता है। उनमें आत्मविश्वास की कमी, चिड़चिड़ापन, ध्यान भटकना और शारीरिक कमजोरी जैसी समस्याएं देखी जाती हैं, जो तंबाकू के प्रभाव को स्पष्ट करती हैं।

तंबाकू से मुक्ति कोई एक दिन की बात नहीं, बल्कि एक मजबूत इच्छाशक्ति और लगातार प्रयास की मांग करती है। सहरसा जैसे जिलों में जागरूकता के साथ-साथ सामाजिक दबाव की भी ज़रूरत है ताकि लोग इस बुरी लत से खुद को और अपने परिजनों को बचा सकें। परिवारों को चाहिए कि वे घर में संवाद का वातावरण बनाएं, बच्चों से खुलकर बात करें और उन्हें समझाएं कि तंबाकू नशा नहीं, एक बीमारी है।

इस दिन का वास्तविक अर्थ तब ही साबित होगा जब सहरसा का हर व्यक्ति यह तय करे कि वह न तंबाकू का सेवन करेगा और न दूसरों को करने देगा। यह सिर्फ स्वास्थ्य का सवाल नहीं, यह जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक जिम्मेदारी का प्रश्न है। तंबाकू को “ना” कहना एक छोटा फैसला लगता है, लेकिन इसके पीछे एक बड़ा बदलाव छुपा होता है — एक ऐसा बदलाव जो किसी की जिंदगी बचा सकता है, किसी बच्चे को रास्ता दिखा सकता है, किसी परिवार को टूटने से बचा सकता है।



विश्व तंबाकू निषेध दिवस हमें सिर्फ याद नहीं दिलाता कि तंबाकू नुकसानदेह है, यह हमें यह सोचने को मजबूर करता है कि क्या हम उस नुकसान को रोकने के लिए तैयार हैं? सहरसा को एक बेहतर, स्वस्थ और जागरूक समाज बनाना है, तो शुरुआत आज से, अभी से, और खुद से करनी होगी।







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