हर किसी की ज़िंदगी में कुछ अनुभव ऐसे होते हैं, जो सिर्फ यादें नहीं बनते, बल्कि हमें गढ़ते हैं, एक दिशा देते हैं। मेरे लिए पीजी सेंटर सहरसा, खासकर हिंदी विभाग, ऐसा ही एक अनुभव रहा — संघर्ष, सिखावन और स्नेह से भरा।
11 नवंबर 2023 को मैंने पीजी सेंटर सहरसा के हिंदी विभाग में नामांकन लिया। उस समय सत्यप्रकाश सर नामांकन ले रहे थे। हालांकि प्रथम सेमेस्टर की कोई कक्षा नहीं हुई, क्योंकि जनवरी तक नामांकन की प्रक्रिया ही चलती रही। इसके बाद फॉर्म भरने की तिथि आ गई और परीक्षा केंद्र बना एमएलटी कॉलेज सहरसा। परीक्षा समाप्त होते ही सेकंड सेमेस्टर की कक्षाएं शुरू हो गईं।
उस समय मैं किसी भी शिक्षक को नहीं जानती थी। सत्यप्रकाश सर नामांकन वाले सर के रूप में, कश्यप सर गोल टोपी पहनने वाले शिक्षक के रूप में और जैनेंद्र सर युवा और ऊर्जावान शिक्षक के रूप में जाने जाते थे। धीरे-धीरे जब कक्षाएं शुरू हुईं, तब सभी शिक्षकों को जानने और समझने का अवसर मिला।
तब विभागाध्यक्ष थे डॉ. धीरेंद्र श्रीवास्तव। विभाग में डॉ. कश्यप सर, डॉ. जैनेंद्र सर और डॉ. अनिमा मैम जैसी विद्वान और स्नेही शख्सियतें थीं। मेरा नियमित छात्रा होना शायद मेरे लिए सौभाग्य रहा, क्योंकि मुझे सभी शिक्षकों का विशेष स्नेह मिला।
इसी दौरान डॉ. श्रीवास्तव सर ने मुझे जैनेंद्र सर के NET तैयारी वाले ग्रुप से जोड़वाया। कुछ दिनों तक उन्होंने ऑनलाइन क्लास भी ली। यहीं से मेरा उनके साथ एक विशेष जुड़ाव बन गया। वे सिर्फ शिक्षक नहीं थे, पथप्रदर्शक बनकर मेरे अंदर आत्मविश्वास का संचार करते रहे।
इसी समय पीजी सेंटर में एक बड़े सेमिनार का आयोजन हुआ, जिसमें विद्वान शिक्षक, बीपीएससी अधिकारी और यूनिवर्सिटी के कई गणमान्य लोग शामिल हुए। नेट और जेआरएफ जैसी परीक्षाओं को लेकर गंभीर चर्चा हुई और विद्यार्थियों को इन परीक्षाओं के लिए तैयार करने का संकल्प भी लिया गया।
हालाँकि सेंटर की भौतिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी। न मुख्य द्वार था, न पक्की ज़मीन। बरसात में कीचड़ से होकर आना एक चुनौती थी। कई बार मेरी गाड़ी कीचड़ में फँस जाती थी, निकलना मुश्किल होता था। लेकिन कहते हैं न, कीचड़ में ही कमल खिलता है — यही बात पीजी सेंटर सहरसा पर एकदम सटीक बैठती है। सुविधाएँ भले ही कम थीं, लेकिन पढ़ाई का स्तर किसी भी कॉलेज से बेहतर था। यहां एक विद्यार्थी के लिए भी पूरी क्लास लगाई जाती थी।
इसके बाद विभाग में बदलाव की बयार चली — नए विभागाध्यक्ष बने डॉ. लाल प्रवीण सिंह सर। उनके आगमन के साथ ही व्यवस्था और अनुशासन में बड़ा बदलाव आया। विभाग में एक सीनियर छात्र राजकुमार जो विद्यार्थियों से अवैध वसूली करता था और परीक्षा में कॉपी छीन लेता था, उसे तुरंत पीजी सेंटर से निष्कासित कर दिया गया।
सेकंड सेमेस्टर की परीक्षा ईस्ट एंड वेस्ट टीचर ट्रेनिंग कॉलेज, पटवाहा में हुई। वहाँ जगह की कमी और अव्यवस्था के कारण हमें धूप में सड़क पर खड़ा रहना पड़ा। शिक्षकों द्वारा कुछ विद्यार्थियों से की गई अभद्रता के कारण, बाद में उस केंद्र को परीक्षा स्थल के रूप में हटा दिया गया।
तीसरे सेमेस्टर में हिंदी दिवस के अवसर पर संगोष्ठी आयोजित हुई। भाषण और क्विज प्रतियोगिता में मैंने प्रथम स्थान प्राप्त किया। यह क्षण मेरे लिए बहुत गौरवपूर्ण था, क्योंकि वहां विश्वविद्यालय के कई कॉलेजों के प्रोफेसर और विद्यार्थी उपस्थित थे।
तब तक पीजी सेंटर सहरसा का चेहरा बदलने लगा था। मुख्य द्वार बन चुका था, और व्यवस्था धीरे-धीरे सुधर रही थी। मुझे पीजी के दौरान सभी शिक्षकों से बहुत सहयोग मिला, लेकिन विशेष रूप से डॉ. लाल प्रवीण सिंह सर और डॉ. जैनेंद्र सर का स्नेह और मार्गदर्शन मुझे हमेशा प्रेरित करता रहा।
जैनेंद्र सर ने सिर्फ मुझे NET की ओर प्रेरित नहीं किया, बल्कि लेखन की दुनिया से भी जोड़ा। उन्हीं की वजह से मैं आज पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सोच सकी। कई जगह से ऑफर आए, लेकिन विभागाध्यक्ष सर ने मुझे कहा — अभी नहीं, पहले खुद को पूर्ण बनाओ।
फोर्थ सेमेस्टर की आंतरिक परीक्षा खत्म होते ही भव्य विदाई समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह की संकल्पना और व्यवस्था डॉ. जैनेंद्र सर ने की, जबकि विभागाध्यक्ष सर ने पहले मना किया था। लेकिन जैनेंद्र सर की जिद और विद्यार्थी प्रेम ने सबको राज़ी कर लिया।
मैं आज गर्व से कह सकती हूं कि पीजी सेंटर सहरसा ने मुझे सिर्फ एक डिग्री नहीं दी, उसने मुझे विचार दिया, अभिव्यक्ति दी और आत्मविश्वास दिया।
🌹 कवयित्री चांदनी झा 🌹
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