सहरसा जिला अंतर्गत बड़गांव से पंद्रह साल पहले जो धार्मिक यात्रा मात्र कुछ युवाओं के जोश और श्रद्धा से शुरू हुई थी, आज वह एक जनांदोलन का रूप ले चुकी है। बात हो रही है कांवर यात्रा की, जो सावन के पवित्र महीने में भगवान शिव को समर्पित एक भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्रा बन चुकी है। यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि युवा ऊर्जा, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक जागरूकता की सशक्त मिसाल है।
बात वर्ष 2010 की है, जब बड़गांव के कुछ युवाओं ने गांव के ही भाजपा नेता मुकेश मानस के नेतृत्व में एक संकल्प लिया था — कि वे सावन महीने में अगुवानी के पवित्र गंगा घाट से जल भरकर ब्रजेन्द्र नाथ महादेव मंदिर तक ८५ किलोमीटर की पदयात्रा करेंगे और शिवलिंग पर जल चढ़ाएंगे। उस समय शायद ही किसी ने कल्पना की हो कि यह यात्रा आने वाले वर्षों में हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन जाएगी।
आज की तारीख में यह कांवर यात्रा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि पूरे सहरसा जिला में उत्सव का स्वरूप धारण कर चुकी है। सावन शुरू होते ही बड़गांव और आसपास के इलाकों में माहौल भक्तिमय हो जाता है। हर घर से कोई न कोई कांवरिया इस पवित्र यात्रा में शामिल होता है। विशेषकर युवाओं में इसे लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। टी-शर्ट, पटका, झंडा, ढोल-नगाड़ा, डीजे की धुन पर ‘बोल बम’ के जयकारों से गांव की गलियाँ गूंज उठती हैं।
यात्रा की शुरुआत सहरसा जिले के अगुवानी गंगा घाट से होती है, जहाँ कांवरिये गंगा जल भरते हैं। यह घाट धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। वहाँ से कांवरिये अपने कांधे पर कांवर लेकर ८५ किलोमीटर की दूरी पैदल तय करते हैं। रास्ते भर अनेक गाँव, शहर, पुल-पुलिया पार करते हुए यह यात्रा बड़गांव के ब्रजेन्द्र नाथ महादेव मंदिर पहुँचती है, जहाँ भक्तजन भगवान शिव को जलाभिषेक करते हैं।
इस यात्रा की सबसे खास बात यह है कि यह सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। यात्रा मार्ग में जगह-जगह ग्रामीण और सामाजिक संगठन कांवरियों के लिए जलपान, चिकित्सा, विश्राम और सहायता शिविर लगाते हैं। रास्ते भर का दृश्य ऐसा प्रतीत होता है जैसे पूरा कोशी क्षेत्र एक ही रंग में रंग गया हो — शिवभक्ति के रंग में।
बड़गांव के भाजपा नेता मुकेश मानस, जिनकी अगुवाई में इस यात्रा की शुरुआत हुई थी, आज भी हर वर्ष इस आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कांवर यात्रा को सिर्फ एक धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक ऐसा माध्यम बना दिया है जो युवाओं को नशा, अपराध और नकारात्मक प्रवृत्तियों से दूर ले जाता है। उनका मानना है कि जब युवा धर्म और संस्कृति से जुड़ता है, तो समाज स्वतः मजबूत होता है।
सावन का महीना यूँ भी शिवभक्तों के लिए अत्यंत प्रिय होता है। लेकिन बड़गांव की कांवर यात्रा इसमें एक नई ऊर्जा भर देती है। यहाँ के युवाओं ने यह साबित कर दिया है कि परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चल सकती है। जहाँ एक ओर सोशल मीडिया पर कांवर यात्रा के वीडियो, फोटो और लाइव अपडेट्स वायरल होते हैं, वहीं दूसरी ओर हर कांवरिया अपने पैरों से सड़क नापकर भगवान भोलेनाथ तक अपनी भक्ति पहुंचाता है।
कई श्रद्धालु तो ऐसे होते हैं जो वर्षों से इस यात्रा में भाग ले रहे हैं। कुछ लोग तो दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, झारखंड और बंगाल जैसे दूर-दराज के राज्यों में रहकर अपना जीवन यापन करते हैं वह भी इस यात्रा में भाग लेने आते हैं। धीरे-धीरे यह यात्रा अब जिला स्तर पर भी प्रसिद्ध हो रही है।
इस यात्रा में शामिल एक कांवरिया ने बताया की , “यह यात्रा सिर्फ एक पदयात्रा नहीं, यह हमारे जीवन की साधना है। यहाँ हम सिर्फ शिव के भक्त नहीं, एक-दूसरे के साथी भी बन जाते हैं। रास्ते में थकान, धूप, बारिश — कुछ भी हमारी आस्था को डिगा नहीं सकती। जब हम ब्रजेन्द्र नाथ महादेव के मंदिर पहुँचकर जल चढ़ाते हैं, तो हर दर्द, हर कठिनाई मिट जाती है।”
बड़गांव के इस पवित्र कांवर यात्रा की यह १५वीं वर्षगांठ एक ऐतिहासिक पड़ाव है। यह यात्रा ना केवल भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा की प्रतीक है, बल्कि युवाओं की ऊर्जा, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक गर्व का जीवंत उदाहरण भी है।
जब कोई पूछता है कि "कांवर यात्रा क्या है?", तो बड़गांव की यह ८५ किलोमीटर की पैदल यात्रा, जिसमें हजारों लोग भाग लेते हैं, उसका उत्तर बनकर खड़ी होती है। और जब कोई पूछता है "भक्ति में शक्ति क्या होती है?", तो सावन की इस कांवर यात्रा की लहर, उत्साह और श्रद्धा से भरी आंखें इसका साक्षात प्रमाण दे देती हैं।
बोल बम! जय शिव शंकर!
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