शब्दों से समाज को जगातीं कवयित्री: शेफालिका झा
लेखिका, शिक्षिका और समाज-संवेदनशील कवयित्री — यह तीनों विशेषण शेफालिका झा के व्यक्तित्व को संक्षेप में वर्णित करते हैं। बिहार के समस्तीपुर जिले के एरौत गांव में जन्मी शेफालिका जी अपनी लेखनी से आज हिंदी साहित्य की एक सशक्त आवाज बन चुकी हैं।
व्यक्तित्व की झलक
- पूरा नाम: शेफालिका झा
- उपनाम: मीनू, शेफू
- जन्म तिथि: 11 फरवरी 1985
- जन्म स्थान: एरौत, रोसड़ा, समस्तीपुर (बिहार)
- शिक्षा: परास्नातक
- वर्तमान निवास: सहरसा, बिहार
- पेशा: अध्यापन (शिक्षिका)
लेखन की शुरुआत
शेफालिका झा को लेखन का शौक बचपन से ही था। वे कहती हैं—
“लेखन की शुरुआत कब हुई, याद नहीं… लेकिन बचपन से ही कुछ-न-कुछ लिखती रही हूँ। 2018-19 में लेखन के प्रति गंभीरता आई।”
प्रेरणा के स्रोत
उनके पिताजी श्री तृप्ति नारायण झा (सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक) एक उच्च कोटि के कवि रहे हैं। घर में उनकी डायरी में लिखी कविताएँ ही शेफालिका जी की पहली प्रेरणा बनीं। उनके चाचा और मामा भी कवि हैं, और प्रसिद्ध कवि आरसी प्रसाद सिंह भी उन्हीं के गांव से थे। इस प्रकार साहित्य उनके रक्त में है।
लेखन शैली और उद्देश्य
शेफालिका जी किसी निर्धारित विषय पर नहीं लिखतीं। जब कोई घटना, बात या अनुभव उन्हें भीतर से झकझोरता है, वही कविता बन जाती है। उनकी कविताओं में सामाजिक विसंगतियों, सत्य बोलने वालों के संघर्ष और आत्मप्रशंसा के यथार्थ का सटीक चित्रण होता है।
प्रसिद्ध कविता: "बात बहुत गंभीर है"
माना क्षणभंगुर है दुनिया,
फिर भी इतनी मारा मारी?
प्रगति देखकर जलने वाली,
किसी-किसी को लगी बीमारी।
भले-भलों की संख्या कम है,
जलकुकड़ों की भीड़ है।
बात बहुत गंभीर है।
कुछ अच्छा करने की सोचो,
तो आँखें फटने लगती हैं।
तन्हा बगुला को तंग करने,
काग टीम जुटने लगती हैं।
सच की राह चलो तो सिर पर,
लटक रही शमशीर है।
बात बहुत गंभीर है।
अपनी राह बनाने वालों,
के खिलाफ षड्यंत्र रचेंगे।
कीर्तिमान नव-नव स्थापित,
होने पर यह जले भुनेंगे।
मुँह में राम, बगल में छूरी,
ऐसी ही तासीर है।
बात बहुत गंभीर है।
आत्मप्रशंसा की यह लस्सी,
घोल-घोलकर पीने वाले।
चाटुकारिता की चटनी को,
चाट-चाट कर जीने वाले।
दोमुँह वाले नागराज की,
यह असली तस्वीर है।
बात बहुत गंभीर है।
✍ शेफालिका झा, समस्तीपुर (बिहार)
साहित्यिक संगठन और सम्मान
वे उड़ान फेसबुक साहित्यिक समूह, काव्यांचल, साहित्य संवेद जैसे कई साहित्यिक मंचों से जुड़ी हैं और सक्रिय रूप से साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेती हैं। उन्हें अनेकों सम्मान व पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं।
प्रेरणा दायक साहित्यकार
शेफालिका झा को वृंदावन लाल वर्मा और आरसी प्रसाद सिंह की रचनाएँ बेहद पसंद हैं। उनकी लेखनी में इन साहित्यकारों के विचारों की स्पष्ट छाप देखने को मिलती है।
समापन विचार
शेफालिका झा की कविताएँ केवल पढ़ने के लिए नहीं होतीं, बल्कि आत्ममंथन और सामाजिक जागरूकता की ओर एक कदम होती हैं। वे अपनी लेखनी से साबित करती हैं कि आज भी कविता समाज में बदलाव लाने का माध्यम बन सकती है।
✍ लेखिका, कवयित्री और एक सजग समाज-प्रहरी के रूप में शेफालिका झा एक प्रेरणा हैं।
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