(एक साहित्यिक व्यक्तित्व पर विशेष आलेख)
बिहार की उर्वर साहित्यिक भूमि ने सदैव ऐसे रचनाकारों को जन्म दिया है, जिन्होंने न केवल भाषा को समृद्ध किया, बल्कि समाज के गहरे अंतर्विरोधों को उकेरकर जनमानस को जागृत भी किया। इसी परंपरा में एक सशक्त नाम है—शेफालिका झा, जो अपनी रचनाओं के माध्यम से पाठकों के हृदय में संवेदना, चिंतन और चेतना का संचार करती हैं।
🔸 व्यक्तित्व की पृष्ठभूमि
पूरा नाम: शेफालिका झा
उपनाम: मीनू, शेफू
जन्म तिथि: 11 फरवरी 1985
जन्म स्थान: आरसी नगर, एरौत (रोसड़ा), समस्तीपुर, बिहार
शिक्षा: परास्नातक
पेशा: अध्यापन
वर्तमान निवास: सहरसा, बिहार
एक पारिवारिक-सामाजिक परिवेश में पली-बढ़ी शेफालिका झा के व्यक्तित्व में संवेदनशीलता, सरलता और साहित्यिक गंभीरता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। बाल्यकाल से ही लेखन में रुचि रखने वाली शेफालिका जी ने कविता, लेख और सामाजिक टिप्पणियों के माध्यम से समाज को न केवल आईना दिखाया है, बल्कि उसकी चेतना को भी झकझोरा है।
🔸 लेखन यात्रा: बचपन से गंभीर अभिव्यक्ति तक
शेफालिका झा का कहना है—
“लेखन की शुरुआत कब हुई, यह याद नहीं... बहुत बचपन से ही लिखती आ रही हूँ। लेकिन लेखन के प्रति गंभीरता वर्ष 2018-19 में आई।”
यह पंक्ति उनके उस आत्मसाक्षात्कार को दर्शाती है, जिसमें लेखन कोई एक समय की घटना नहीं, बल्कि अनवरत चलने वाली एक अंतर्धारा रही है। उनके लिए लेखन केवल शौक नहीं, बल्कि आत्मिक अभिव्यक्ति और सामाजिक दायित्व है।
🔸 प्रेरणा के स्रोत: साहित्यिक विरासत का प्रभाव
शेफालिका झा को लेखन के संस्कार विरासत में मिले। उनके पिताजी श्री तृप्ति नारायण झा (सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक) स्वयं एक प्रतिष्ठित कवि रहे हैं। वे बताती हैं—
"घर में पिताजी की कविताओं से भरी डायरी पढ़ते-पढ़ते कब मैं खुद कविता लिखने लगी, पता ही नहीं चला।"
उनके बड़े चाचा और मामा भी कवि हैं, जबकि आरसी प्रसाद सिंह जैसे प्रतिष्ठित कवि, जो उनके ही गांव से थे, उन्हें सदैव प्रेरणा देते रहे हैं। इस प्रकार, साहित्य उनके जीवन का स्वाभाविक अंग बन गया।
🔸 कविता की शैली और विषय: संवेदना से संघर्ष तक
शेफालिका जी की कविताओं में सामाजिक विसंगतियों, अंतर्विरोधों और यथार्थ का सजीव चित्रण मिलता है। वे कहती हैं—
"मैं विषय पहले से तय नहीं करती। कोई घटना, कोई बात जो मन को छू जाए, वहीं से कविता जन्म लेती है।"
उनकी कविताओं में
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सामाजिक विडंबनाएँ
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आत्मप्रवंचना और चाटुकारिता की निंदा
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सत्य बोलने वालों का संघर्ष
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और प्रगतिशील विचारधारा की स्पष्ट झलक मिलती है।
उनकी कविताएँ पाठक को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।
🔸 एक प्रतिनिधि कविता – “बात बहुत गंभीर है”
शेफालिका झा की चर्चित कविता “बात बहुत गंभीर है” एक नवगीत की शैली में लिखी गई सशक्त कविता है, जिसमें समाज में फैले ईर्ष्या, द्वेष, साजिश और दोहरे आचरण को उजागर किया गया है।
माना क्षणभंगुर है दुनिया,
फिर भी इतनी मारा मारी?
प्रगति देखकर जलने वाली,
किसी-किसी को लगी बीमारी।
भले - भलों की संख्या कम है, जलकुकड़ों की भीड़ है।
बात बहुत गंभीर है।
कुछ अच्छा करने की सोचो,
तो ऑंखें फटने लगती हैं ।
तन्हा बगुला को तंग करने,
काग टीम जुटने लगती हैं ।
सच की राह चलो तो सिर पर,
लटक रही शमशीर है।
बात बहुत गंभीर है।
अपनी राह बनाने वालों,
के खिलाफ षड्यंत्र रचेंगे।
कीर्तिमान नव -नव स्थापित,
होने पर यह जले भुनेंगे।
मुँह में राम, बगल में छूरी,
ऐसी ही तासीर है।
बात बहुत गंभीर है।
आत्मप्रशंसा की यह लस्सी,
घोल- घोलकर पीने वाले ।
चाटुकारिता की चटनी को,
चाट -चाट कर जीने वाले।
दोमुँह वाले नागराज की,
यह असली तस्वीर है।
बात बहुत गंभीर है।
यह कविता न केवल एक काव्यात्मक रचना है, बल्कि आज की सामाजिक मनोवृत्तियों पर एक तपते लोहे सी चोट है। पूरी कविता में एक नवजागरण की पुकार है—जो लोगों को चेताती है कि सच्चाई की राह पर चलना आसान नहीं, लेकिन ज़रूरी है। यह कविता एक साहित्यिक दस्तावेज है, जो आने वाले समय में भी सामयिक बनी रहेगी।
🔸 प्रकाशन, मंच और सामाजिक जुड़ाव
शेफालिका झा की रचनाएँ विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं, जैसे कि — चिकित्सा। इसके अतिरिक्त वे उड़ान फेसबुक साहित्यिक समूह, काव्यांचल, साहित्य संवेद समेत दर्जनों साहित्यिक-सामाजिक संगठनों से जुड़ी हैं और वहाँ सक्रिय योगदान देती रही हैं। उनकी रचनात्मकता को कई मंचों और संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है, जो उनकी निरंतर साहित्यिक उपस्थिति और प्रभाव का प्रमाण है।
🔸 प्रेरणादायक लेखक और कवि
शेफालिका जी वृंदावन लाल वर्मा और आरसी प्रसाद सिंह की रचनाओं से अत्यंत प्रभावित रही हैं। उनकी लेखनी में इन साहित्यकारों की दृष्टि, वैचारिक गहराई और सामाजिक चेतना की प्रतिध्वनि सुनाई देती है।
🔸 लेखन की दृष्टि: लेखनी एक जागरण है
शेफालिका झा के लिए कविता लिखना केवल सृजन नहीं, एक ज़िम्मेदारी है। वे अपने शब्दों को एक औज़ार मानती हैं, जिसके माध्यम से वे समाज की गंदगी पर चोट करती हैं, विसंगतियों को उजागर करती हैं और पाठकों को आत्मावलोकन का अवसर देती हैं। उनकी कविताएँ पढ़कर यह एहसास होता है कि साहित्य आज भी समाज का दर्पण है, और उसमें अपनी छवि देखकर हम स्वयं को सुधार सकते हैं।
🔚 समापन
शेफालिका झा आज के दौर की उन कवयित्रियों में हैं, जो भावुकता में डूबी नहीं, बल्कि चिंतन में जागरूक हैं। उनकी रचनाएँ किसी कल्पनालोक की उड़ान नहीं, बल्कि यथार्थ के धरातल पर पनपती ऐसी काव्य-वृत्तियाँ हैं, जो पाठकों को भीतर तक झकझोर देती हैं। वे समाज के स्याह पहलुओं पर कविता के उजाले से रोशनी डालती हैं—बिना किसी शोर के, लेकिन पूरी गंभीरता से।
✍ शब्दों की स्याही से सोच बदलने की शक्ति रखती हैं शेफालिका झा।
— सहरसा (बिहार) की एक सशक्त कवि, शिक्षिका और सामाजिक जागरूकता की संवाहक।
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